आश्विन अमावस्या तक होता है पितृ पक्ष जानिए क्या है विशेषताएं?
आगरा। पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है और इन 16 दिनों में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं। श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं।
पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। (पर जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो, अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना, सर्पदंश, विष, शस्त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए।) नए फसल के कटने से पहले पितरों को याद करके उन्हें जल (तर्पण) और भोजन (पिंड) प्रदान किया जाता है।
पितरों के श्राद्ध के लिए पूर्वाह्न की बजाय मध्यान्ह तथा अपराह्न का समय श्रेष्ठ माना गया है। जबकि पितरों का श्राद्ध, तर्पण भूलकर भी शाम या रात के समय नहीं करना चाहिए। जिस तिथि में पूर्वज की मृत्यु हुई हो उसी तिथि में श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करना चाहिए। वहीं ऐसे पितर जिनके मृत्यु की तिथि पता न हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या यानी अश्विन माह की अमावस्या तिथि पर किया जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, घर के मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है। अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पितृ कर्म ही ऐसा है जिसे आप को स्वयं ही करना चाहिए तभी सफल माना जाता है अन्य अन्य यज्ञ, पूजन, हवन या दान जैसे आप संकल्प देकर अन्य किसी प्रतिनिधि से नहीं करा सकते क्यूँ की ये आप के वंश, गोत्र परम्परा का विषय है।
ऐसी मान्यता है कि पितरों के नाराज रहने के कारण घर की किसी संतान का विवाह नहीं होता है और यदि हो भी जाए तो वैवाहिक जीवन अस्थिर रहता है। मतलब कि वंश परंपरा आगे बढ़ाने में अवरोध होता है। यदि पितृ नाराज हैं तो आप जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार भी हो सकते हैं।
पं. शिवकेश दुबे
पूर्व ट्रस्टी पीताम्बरा पीठ
दतिया मध्य प्रदेश